होरी खेलूंगी घर आए चिदानंद कन्त ।शिशर मिथ्यात गई अब, आइ काल की लब्धि वसंत ॥टेक॥पीय संग खेलनि कौं, हम सइये तरसी काल अनंत ।भाग जग्यो अब फाग रचानौ, आयौ विरह को अंत ॥१॥सरधा गागरि में रूचि रुपी, केसर घोरि तुरन्त ।आनन्द नीर उमंग पिचकारी, छोडूंगी नीकी भंत ॥२॥आज वियोग कुमति सौतनि कौ, मेरे हरष अनंत ।'भूधर' धनि एही दिन दुर्लभ, सुमति राखी विहसंत ॥३॥
अर्थ : सुमति रूपी नारी कहती है कि आज मैं सचमुच होली खेलूंगी, क्योंकि आज मेरे स्वामी चिदानंद मेरे घर आ गये हैं और काललब्धिरूपी वसंत ऋतु भी आ गई है।
हे सखियो! मैं अनंत काल से अपने स्वामी के साथ खेलने के लिए तरस रही थी, परंतु अब मेरा भाग्य उदय हुआ है कि विरह का अंत आ गया और मैं फाग रचा रही हूँ।
मैंने श्रद्धारूपी गागर में रुचि रूपी केसर घोली, आनंदरूपी जल मिलाया और उत्साह रूपी पिचकारी अच्छी तरह चलाई है। आज मेरी कुमति रूपी सौतनौं को स्वामी का वियोग हुआ है।
भूधरदास कवि कहते हैं कि आज का दिन अत्यंत दुर्लभ है। आज सुमति रूपी नारी बहुत प्रसन्न है। बड़ा ही धन्य अवसर है आज।