Jain Radio
Close

Play Jain Bhajan / Pooja / Path

Radio Next Audio
nikkyjain@gmail.com

🙏
श्री
Click Here

देव

शास्त्र

गुरु

धर्म

तीर्थ

कल्याणक

महामंत्र

अध्यात्म

पं दौलतराम कृत

पं भागचंद कृत

पं द्यानतराय कृत

पं सौभाग्यमल कृत

पं भूधरदास कृत

पं बुधजन कृत

पं मंगतराय कृत

पं न्यामतराय कृत

पं बनारसीदास कृत

पं ज्ञानानन्द कृत

पं नयनानन्द कृत

पं मख्खनलाल कृत

पं बुध महाचन्द्र

सहजानन्द वर्णी

पर्व

चौबीस तीर्थंकर

बाहुबली भगवान

बधाई

दस धर्म

बच्चों के भजन

मारवाड़ी

selected

प्रारम्भ

नित्य पूजा

तीर्थंकर

पर्व पूजन

विसर्जन

पाठ

छहढाला

स्तोत्र

ग्रंथ

आरती

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

Youtube -- शास्त्र गाथा

Youtube -- Animations

गुणस्थान

कर्म

बंध

प्रमाण

Other

Download

PDF शास्त्र

Jain Comics

Print Granth

Kids Games

Crossword Puzzle

Word Search

Exam


अहो दोऊ रंग भरे
Karaoke :
राग : सोरठ

अहो दोऊ रंग भरे खेलत होरी, अलख अमूरति की जोरी ॥टेक॥

इतमैं आतम राम रंगीले, उतमैं सुबुद्धि किसोरी ।
या कै ज्ञान सखा संग सुन्दर, बाकै संग समता गोरी ॥१॥

सुचि मन सलिल दया रस केसरि, उदै कलस में घोरी ।
सुधी समझि सरल पिचकारि, सखिय प्यारी भरि भरि छोरी ॥२॥

सत-गुरु सीख तान धुरपद की, गावत होरा होरी ।
पूरव बंध अबीर उड़ावत, दान गुलाल भर झोरी ॥३॥

'भूधर' आजि बड़े भागिन, सुमति सुहागिन मोरी ।
सो ही नारि सुलछिनी जग में, जासौं पतिनै रति जोरी ॥३॥



अर्थ : अहो, देखो आत्मा व सुमति दोनों रंग भर- भरकर होली खेलते हैं । यह अलख-अदृश्य, न दिखाई देनेवाली की और अमूर्त की जोड़ी है।

एक ओर तो ज्ञानरंगों से रंगीले आत्माराम हैं और दूसरी परिपक्वता की ओर अग्रसर सुबुद्धि सुमतिरूपी किशोरी है। एक के ( आत्मा के) साथ मित्ररूप में ज्ञान है तो दूसरे के (सुमति के) साथ समता-रूपी सहेली।

आत्मा देहरूपी कलश में, जल के समान शुद्ध मन में करुणारस की दया की केशर पोलकर विवेकसहित सरल भावों की पिचकारी भर-भरकर सखियों पर छोड़ रही है, अर्थात् करुणाभाव सर्वांग से मुखरित है।

जैसे होली के अवसर पर गाई जानेवाली ध्रुपद में काफी थाट की धुन-बंदिश अत्यन्त मधुर होती है, वैसे ही सत्गुरु का सदुपदेश अत्यन्त मनमोहक व सुग्राहय होता है, जिसे हृदयंगम करने पर आत्मानुभूति से बंधी कर्म-शृंखला उदय में आकर निर्जरित होती है, अबीर की भाँति उड़ती जाती है।

भूधरदास जी कहते हैं कि बड़े भाग्य से आज यह सुमति सुहागिन मेरी हुई है अर्थात् मुझे विवेक जागृत हुआ। आत्मारूपी वर के लिए सुमति (सम्यकजान) ही एकमात्र योग्य सुलक्षणा वधू है, इसके साथ की गई प्रीति ही फलदायक है।