उत्तम नरभव पायकै
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तर्ज : मेघा छाए आधी रात
उत्तम नरभव पायकै, मति भूलै रे रामा ॥टेक॥
कीट पशु का तन जब पाया, तब तू रह्या निकामा ।
अब नरदेही पाय सयाने, क्यौं न भजे प्रभु नामा ॥१॥
सुरपति याकी चाह करत उर, कब पाऊं नरजामा ।
ऐसा रतन पायकैं भाई, क्यौं खोवत बिनकामा ॥२॥
धन जोबन तन सुन्दर पाया, मगन भया लखि भामा ।
काल अचानक झटक खायगा, परे रहैंगे ठामा ॥३॥
अपने स्वामी के पदपंकज, करो हिये विसरामा ।
मैंटि कपट भ्रम अपना 'बुधजन' ज्यौं पावो शिवधामा ॥४॥