पतितउधारक पतित रटत है, सुनिये अरज हमारी हो ।तुमसो देव न आन जगतमैं, जासौं करिये पुकारी हो ॥टेक॥साथ अविद्या लगि अनादिकी, रागदोष विस्तारी हो ।याहीतैं सन्तति करमनिकी, जनममरनदुखकारी हो ॥पतितउधारक पतित रटत है, सुनिये अरज हमारी हो ॥2॥मिलै जगत जन जो भरमावै, कहै हेत संसारी हो ।तुम विनकारन शिवमगदायक, निजसुभावदातारी हो ॥पतितउधारक पतित रटत है, सुनिये अरज हमारी हो ॥3॥तुम जाने बिन काल अनन्ता, गति-गति के भव धारी हो ।अब सनमुख 'बुधजन' जांचत है, भवदधि पार उतारी हो ॥पतितउधारक पतित रटत है, सुनिये अरज हमारी हो ॥४॥