मति भोगन राचौ जी, भव-भव में दुख देत घना ॥टेक॥इनके कारन गति गति मांही नाहक नाचौ जी ।झूठे सुख के काज धरम में पाड़ौ खांचौं जी ॥१॥पूरब कर्म उदय सुख आया, राजौ माचौ जी ।पाप उदय पीड़ा भोगन में, क्यौं मन काचौ जी ॥२॥सुख अनंत के धारक तुम ही, पर क्यौं जांचौं जी ।'बुधजन' गुरु का वचन हिया में, जानौ सांचौ जी ॥३॥