मेरो मनवा अति हर्षाय,तोरे दरसन सो मनवा अति हर्षाय ।शांत छवि लखि शांत भाव ह्वै,आकुलता मिट जाय ॥टेक॥जब लौ चरण निकट नहीं आया, तब आकुलता थाय ।अब आवत ही निज निधि पाया, नित नव मंगल पाय ॥मेरो मनवा अति हर्षाय, तोरे दरसन सो अति हर्षाय ॥१॥बुधजन अरज करे कर जोरे, सुनिए श्री जिनराय ।जब लौ मोख होय नहीं तब लौं, भक्ति करूँ गुणगाय ॥मेरो मनवा अति हर्षाय, तोरे दरसन सो अति हर्षाय ॥२॥