सुनकर वाणी जिनवर की म्हारे हर्ष हिये ना समाय जी॥काल अनादि की तपन बुझानी, निज निधि मिली अथाह जी सुनकर वाणी जिनवर की म्हारे हर्ष हिये ना समाय जी॥संशय भ्रम और विपर्यय नाशा, सम्यक बुद्धि उपजाय जी सुनकर वाणी जिनवर की म्हारे हर्ष हिये ना समाय जी॥नरभव सफ़ल भयो अब मेरो, बुधजन भेंटत पाय जी सुनकर वाणी जिनवर की म्हारे हर्ष हिये ना समाय जी॥