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काल अचानक ही ले
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राग : षट्ताल तिताला

काल अचानक ही ले जायेगा, गाफिल होकर रहना क्‍या ।
छिन हू तोकूं नाहिं बचावे तौ सुभटन का रखना क्‍या (रे) ॥टेक॥

रंच स्वाद करन के काजै, नर्कन में दुःख भरना क्‍या ।
कुलजन पथिकनि के हित काजै जगत जाल में परना क्या ॥
काल अचानक ही ले जायेगा, गाफिल होकर रहना क्‍या ॥१॥

इन्द्रादिक कोउ नाहिं बचैया, और लोक का शरणा क्‍या (रे) ।
निश्चय हुआ जगत में मरना, कष्ट परे तब डरना क्या (रे) ॥
काल अचानक ही ले जायेगा, गाफिल होकर रहना क्‍या ॥२॥

अपना ध्यान करत खिर जावै, तौ करमनि का हरना क्या (रे) ।
अब हित करि आरत तजि 'बुधजन', जन्म-जन्म में जरना क्या रे ॥
काल अचानक ही ले जायेगा, गाफिल होकर रहना क्‍या ॥३॥



अर्थ : हे जीव ! यह काल अर्थात्‌ मृत्यु अचानक ही तुझे ले जायेगी इसलिये इस संसार में बेहौश होकर मत रहो।

हे प्राणी मृत्यु के आने पर ! जो एक क्षण भी तुझे नहीं बचा सकते ऐसे योद्धाओं को अपने पास क्यों रखना ? अर्थात्‌ उनको रखने से क्या फायदा ।

हे जीव ! लौकिक के जरा से वाद-विवाद के कारण नरक गति के दु:खों को क्यों सहते हो और परिवार - कुटम्बीजनों के हित के लिये स्वयं संसार जाल में फंसना उचित नहीं है।

हे चेतन! जब इन्द्र जैसे बलशाली व्यक्ति भी तुझे नहीं बचा सकते तो जगत के अन्य लोगों से तो शरण की क्या आशा रखना ? इस जगत में मरना ही है तो कष्ट के आने पर या रोगादि-मृत्यु आदि आने पर उनसे घबराने से क्या फायदा ।

हे जीव ! जो कर्म निज आत्म ध्यान से तुरंत ही नष्ट हो जते हैं तो ऐसे कर्मों की नष्ट करने की चिन्ता क्यो करना । बुधजन क॒वि तो कहते है कि आर्त-रौद्र, राग-द्वेष के परिणामों का त्यागकर अपना हित करो तो जन्म-जन्म के दुःखों को सहन नहीं करना पड़ेगा।