जगत में होनहार सो होवै, सुर नृप नाहि मिटावै ॥टेक॥आदिनाथ से कौ भोजन में, अन्तराय उपजावै ।पारसप्रभु कौं ध्यान लीन लखि कमठ मेघ बरसावै ॥जगत में होनहार सो होवै, सुर नृप नाहि मिटावै ॥१॥लक्ष्मन से सग भ्राता जाके, सीता राम गमावै ।प्रतिनारायण रावण से की, हनुमत लंक जरावै ॥जगत में होनहार सो होवै, सुर नृप नाहि मिटावै ॥२॥जैसो कमावै तैसो ही पावै, यो 'बुधजन' समझावै । आप आपकौ आप कमावो, क्यो परद्रव्य कमावै ॥जगत में होनहार सो होवै, सुर नृप नाहि मिटावै ॥३॥