धनि सरधानी जग में, ज्यों जल कमल निवास ॥टेक॥मिथ्या तिमिर फट्यो प्रगट्यो शशि, चिदानंद परकास ॥१॥पूरव कर्म उदय सुख पावें भोगत ताहि उदास ।जो दुख में न विलाप करें निखैर सहै तन त्रास ॥धनि सरधानी जग में, ज्यों जल कमल निवास ॥२॥उदय मोह चारित परवशि है, ब्रत नहि करत प्रकासजो किरिया करि हैं निरवांछक, करैं नहीं फल आस ॥धनि सरधानी जग में, ज्यों जल कमल निवास ॥३॥दोष रहित प्रभु धर्म दयाजुत परिग्रह विन गुरु तास ।तत्वारथ रुचि है जा के घर 'बुधजन' तिनका दास ॥धनि सरधानी जग में, ज्यों जल कमल निवास ॥४॥सरधानी=श्रद्धानी; तिमिर फट्यो=अंधकार हटा; निखैर=बैर-रहित;