नरभव पाय फेरि दुख भरना, ऐसा काज न करना हो ॥टेक॥नाहक ममत ठानि पुद्गलसौं, करम जाल क्यौं परना हो ॥१॥यह तो जड़ तू ज्ञान अरूपी, तिल तुष ज्यौं गुरु वरना हो ।राग दोष तजि भजि समताकौं, कर्म साथके हरना हो ॥२॥यो भव पाय विषय-सुख सेना, गज चढ़ि इंर्धन ढोना हो ।'बुधजन' समुझि सेय जिनवर पद, ज्यौं भवसागर तरना हो ॥३॥