सम्यग्ज्ञान बिना तेरो जनम
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सम्यग्ज्ञान बिना तेरो जनम अकारथ जाय ॥टेक॥
अपने सुख में मगन रहत नहिं, पर की लेत बलाय ।
सीख सुगुरु की एक न मानै, भवभव मैं दुख पाय ॥१॥
ज्यौं कपि आप काठ लीला करि, प्रान तजै बिललाय ।
ज्यौं निज मुख कर जाल मकरिया, आप मरै उलझाय ॥२॥
कठिन कमायो सब धन ज्वारी, छिन में देत गमाय ।
जैसे रतन पाय के भोंदू, बिलखे आप गमाय ॥३॥
देव-शास्त्र-गुरु को निहचै करि, मिथ्यामत मति ध्याय ।
सुरपति बांछा राखत याकी, ऐसी नर परजाय ॥४॥