हम शरन गह्यो जिन चरन
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राग - सारंग, हम बैठे अपनी मौन सों
हम शरन गह्यो जिन चरन को ॥टेक॥
अब औरन की मान न मेरे, डरहु रह्यो नहि मरन को ॥
भरम विनाशन तत्त्व प्रकाशन, भवदधि तारन तरन को ।
सुरपति नरपति ध्यान धरत वर, करि निश्चय दुख हरन को ॥
हम शरन गह्यो जिन चरन को ॥१॥
या प्रसाद ज्ञायक निज मान्यौ, जान्यौ तन जड़ परन को ।
निश्चय सिध सो पै कषायतै, पात्र भयो दुख भरन को ॥
हम शरन गह्यो जिन चरन को ॥२॥
प्रभु बिन और नहीं या जगमैं, मेरे हित के करन को ।
बुधजन की अरदास यही है, हर संकट भव फिरन को ॥
हम शरन गह्यो जिन चरन को ॥३॥