अपने निजपद को मत खोय, चेतन में समझाऊं तोय ॥टेक॥विकट पंथ जाना है तुझको, मारग में मत सोय ।ज्ञान गठरिया लुट जावेगी, तू गाफिल मत होय ॥अपने निजपद को मत खोय, चेतन में समझाऊं तोय ॥१॥मत ना विषय भोग में राचे, मत परनारी जोय ।आप बड़ाई पर निंदा मत कर, जो चातुर होय ॥अपने निजपद को मत खोय, चेतन में समझाऊं तोय ॥२॥धरम कलप तरु शिव फल दायक, मत काटे मत खोय ।पछतावेगा मूरख चेतन, पाप बबूल न बोय ॥अपने निजपद को मत खोय, चेतन में समझाऊं तोय ॥३॥पर परणति को तजदे 'न्यामत', सब अतर रज धोय ।विषय कषाय हलाहल तजकर, पी निज आनंद तोय ॥अपने निजपद को मत खोय, चेतन में समझाऊं तोय ॥४॥