अरे यह क्या किया नादान, तेरी क्या समझपे पड़ गई धूल ॥टेक॥आंब हेत ते बाग लगायो, बो दिये पेड़ बम्बूल ।अरे फल चाखेगा रोवेगा, क्या रहा है मन में फूल ॥अरे यह क्या किया नादान, तेरी क्या समझपे पड़ गई धूल ॥१॥हाथ सुमरनी बाँह कतरनी निज पद को गया भूल ।मिथ्यादर्शन ज्ञान लिया रहा, समकित से प्रतिकूल ॥अरे यह क्या किया नादान, तेरी क्या समझपे पड़ गई धूल ॥२॥कंचन भाजन कीच उठाया, भरी रजाई शूल ।'न्यामत' सौदा ऐसा किया जामें, ब्याज रहा नहीं मूल ॥अरे यह क्या किया नादान, तेरी क्या समझपे पड़ गई धूल ॥३॥