क्यों परमादी रे चेतनवा, तोसे धर्म करो ना जाय ।धरम करो ना जाय, प्रभु का कर्म करो ना जाय ॥टेक॥निस दिन विषय भोग में राचा, क्रोध लोभ माया मद माचा ।पाप करे मन लाय, तोसे धर्म करो ना जाय ।क्यों परमादी रे चेतनवा, तोसे धर्म करो ना जाय ॥१॥खेल तमाशों में निश खोवे, सारी रात खड़ा मुख जोवे ।धर्म सुने सो जाय, तोसे धर्म करो ना जाय ।क्यों परमादी रे चेतनवा, तोसे धर्म करो ना जाय ॥२॥पाप करम कर द्रव्य कमावे, पाप हेत पर लाख लुटावे ।दान करत दुख पाय, तोसे धर्म करो ना जाय ।क्यों परमादी रे चेतनवा, तोसे धर्म करो ना जाय ॥३॥परबस भूख मरे दुख पावे, कष्ट सहे कुछ पार न जावे ।ध्यान धरो ना जाय, तोसे धर्म करो ना जाय ।क्यों परमादी रे चेतनवा, तोसे धर्म करो ना जाय ॥४॥'न्यामत' सुन प्योरे जिन बानी, भव-भव मे होवे सुखदानी ।अन्त मुकति ले जाय, तोसे धर्म करो ना जाय ।क्यों परमादी रे चेतनवा, तोसे धर्म करो ना जाय ॥५॥