घर आवो सुमति वरनार तेरी सूरत मन भाती है ॥टेक॥कुमति दुहाग दिया तुझ कारण जो तू चाहती है ।पूनम चन्द्र तेरा मुख है क्यों नहीं दिखलाती है ॥घर आवो सुमति वरनार तेरी सूरत मन भाती है ॥१॥मुनि जन इन्द्रबली नारायण सब मन भाती है ।स्वर्ग चन्द्र सूरज तू अंत को शिव ले जाती है ॥घर आवो सुमति वरनार तेरी सूरत मन भाती है ॥२॥तुझको पाकर परमाद मोह की थिति घट जाती है ।'न्यामत' प्रीति करी तेरे से अब नहीं जाती है ॥घर आवो सुमति वरनार तेरी सूरत मन भाती है ॥३॥