तुम्हारे दर्श बिन स्वामी, मुझे नहीं चैन पड़ती है ।छवि वैराग्य तेरी सामने आँखों के फिरती है ॥टेक॥निराभूषण विगतदूशन, परम आसन, मधुर भाषण ।नजर नैंनो की आशा की अनी पर से गुजरती है ॥तुम्हारे दर्श बिन स्वामी, मुझे नहीं चैन पड़ती है ॥१॥नहीं कर्मों का डर हमको, कि जब लगे ध्यान चरनन में ।तेरे दर्शन से सुनते है करम रेखा बदलती है ॥तुम्हारे दर्श बिन स्वामी, मुझे नहीं चैन पड़ती है ॥२॥मिले गर स्वर्ग की संपत्ति, अचंभा कौन सा इसमें ।तुम्हें जो नयन भर देखें, गति दुर्गति ही टलती है ॥तुम्हारे दर्श बिन स्वामी, मुझे नहीं चैन पड़ती है ॥३॥हजारों मूर्तियाँ हमने बहुत सी अन्य मत देखी ।शांति मूरत तुम्हारी सी नहीं नजरों में चढ़ती है ॥तुम्हारे दर्श बिन स्वामी, मुझे नहीं चैन पड़ती है ॥४॥जगत सिरताज हो जिनराज 'न्यामत' को दरश दीजे । तुम्हारा क्या बिगड़ता है मेरी बिगड़ी सुधरती है ॥तुम्हारे दर्श बिन स्वामी, मुझे नहीं चैन पड़ती है ॥५॥