मत तोरे तोरे तोरे मेरे शील का सिंगार ।शील का सिंगार मेरा धर्म का सिंगार ॥टेक॥राजा तेरे रानी कहिये, आष्टादश हजार ।जिस पर तू परतिरया लोभी, जीवन धिक्कार ॥मत तोरे तोरे तोरे मेरे शील का सिंगार ॥१॥लाया क्यों नहीं जीत स्वयम्वर खुले दरबार ।दण्डक वन से लाया मुझको करके मायाचार ॥मत तोरे तोरे तोरे मेरे शील का सिंगार ॥२॥मत ना हाथ लगाना मुझको पापी दुराचार ।मैं राखूंगी शील शिरोमणि नातर मरूं इसबार ॥मत तोरे तोरे तोरे मेरे शील का सिंगार ॥३॥'न्यामत' शील जगत में कहिये परम हितकार ।अरे जो कोई याको त्यागे पड़े नरक मंझार ॥मत तोरे तोरे तोरे मेरे शील का सिंगार ॥४॥