विषय भोग में तूने ऐ जिया, क्यों दिल को अपने लगा दिया ।तेरा ज्ञान सूर्य समान है, उसे बादलों में छुपा दिया ॥टेक..तेरा ज्ञानानन्द स्वरूप है, तेरा ब्रह्मानन्द स्वरूप है ।जड़-रूप भोग विलास में, तूने अपने को है भुला दिया ॥विषय भोग में तूने ऐ जिया, क्यों दिल को अपने लगा दिया ।तेरा ज्ञान सूर्य समान है उसे बादलों में छुपा दिया ॥१॥यह भोग शत्रु समान है, होशियार बन के तू देख ले ।तेरा यार बन करके तुझे, चारों गति में रुला दिया ॥तेरा ज्ञान सूर्य समान है उसे बादलों में छुपा दिया ।विषय भोग में तूने ऐ जिया, क्यों दिल को अपने लगा दिया ॥२॥तू दिया है ऐसा जहान में, कि जला तो है, नहीं रौशनी ।तू जला है मोह की ओट में, क्यों ज्ञान अपना डूबा दिया ॥तेरा ज्ञान सूर्य समान है उसे बादलों में छुपा दिया ।विषय भोग में तूने ऐ जिया, क्यों दिल को अपने लगा दिया ॥कुमति ने ऐ 'न्यामत' तुझे, जगजाल में है फंसा दिया ।दामन सुमति सी नार का, तेरे कर से है छुड़ा दिया ॥तेरा ज्ञान सूर्य समान है उसे बादलों में छुपा दिया ।विषय भोग में तूने ऐ जिया, क्यों दिल को अपने लगा दिया ॥