मूलन बेटा जायो रे साधो,जानै खोज कुटुम्ब सब खायो रे ॥टेक॥जन्मत माता ममता खाई, मोह लोभ दोई भाई ।काम क्रोध दोई काका खाये, खाई तृषना दाई ॥१॥पापी पाप परोसी खायो, अशुभ करम दोइ माया ।मान नगर को राजा खायो, फैल परो सब गामा ॥२॥दुरमति दादी खाई दादो, मुख देखत ही मुओ ।मंगलाचार बधाये बाजे, जब यो बालक हुओ ॥३॥नाम धरयो बालक को भोंदू, रूप बरन कछु नाहीं ।नाम धरंते पांडे खाये, कहत 'बनारसि' भाई ॥४॥
अर्थ : कवि बनारसीदास ने एक आध्यात्मिक बेटे के जन्म को दिखाने का प्रयास किया है। वह आध्यात्मिक बेटा 'शुद्धोपयोग' है। दोनों में बड़ी कुशलता से 'सांगरूपक' रचा गया है ।
जिस प्रकार मूल नक्षत्र में उत्पन्न होनेवाला पुत्र समूचे कुटुम्ब को खा जाता है, ठीक वैसे ही शुद्धोपयोग के उत्पन्न होते ही परिवार-सम्बन्धी माया-ममता बिलकुल समाप्त हो गयी । उसने जन्म लेते ही ममता-रूपी माता, मोह-लोभरूपी दोनों भाई, काम-क्रोधररूपी दो काका और तृष्णा रूपी धाय को खा लिया ।
पापरूपी पड़ोसी, अशुभ कर्मरूपी मामा और घमण्ड नगर के राजा को समाप्त ही कर दिया, तथा स्वयं समूचे गाँव मे फैल गया।
उसने दुर्मतिरूपी दादी को खा लिया और दादा तो उसका मुख देखते ही मर गया था। इस बालक के उत्पन्न होने पर भी मंगलाचार के बधाये गाये गये थे ।
इस बालक का नाम भोंदू रखा गया, क्योंकि उसके कुछ भी रूप ओर वर्ण नहीं है । यह तो ऐसा बालक है, जिसने नाम रखनेवाले पाण्डे को भी खा लिया है ।