जगत में सो देवन को देव ।जासु चरन परसै इन्द्रादिक, होय मुकति स्वयमेव ॥टेक॥जो न छुधित, न तृषित, न भयाकुल, इंद्री विषय न बेव ।जनम न होय, जरा नहिं व्यापै, मिटी मरन की टेव ॥जगत में सो देवन को देव ॥१॥जाकै नहिं विषाद, नहिं बिस्मय, नहिं आठों अहमेव ।राग विरोध मोह नहिं जाके, नहिं निद्रा परसेव ॥जगत में सो देवन को देव ॥२॥नहिं तन रोग, न श्रम, नहिं चिंता, दोष अठारह भेव ।मिटे सहज जाके ता प्रभु की, करत 'बनारसि' सेव ॥जगत में सो देवन को देव ॥३॥