भेदविज्ञान जग्यौ जिन्हके घट, सीतल चित्त भयौ जिम चंदन ।केलि करे सिव मारगमैं, जग माहिं जिनेसुरके लघु नंदन ॥१॥सत्यसरूप सदा जिन्हकै, प्रगट्यौ अवदात मिथ्यात-निकंदन ॥२॥सांतदसा तिन्हकी पहिचानि, करै कर जोरि बनारसि वंदन ॥३॥
अर्थ : जिनके ह्रदय में निज-पर का विवेक प्रगट हुआ है, जिनका चित्त चन्दन के समान शीतल है अर्थात् कषायों का आताप नहीं है, जो निज-पर विवेक होनेसे मोक्षमार्ग जिनके लिए (केलि) खेल है, जो संसार में अरहंत-देव के लघु पुत्र हैं (थोड़े ही काल में अरहंत पद प्राप्त करनेवाले हैं), जिन्हें (मिथ्यात-निकंदन) मिथ्यादर्शन को नष्ट करनेवाला (अवदात) निर्मल सम्यग्दर्शन प्रकट हुआ है; उन सम्यग्दृष्टि जीवों की आनंदमय अवस्था का निश्चय करके पं. बनारसीदासजी हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं ॥