मगन ह्वै आराधो साधो अलख पुरुष प्रभु ऐसा । जहां जहां जिस रस सौं राचै, तहां तहां तिस भेसा ॥टेक॥ सहज प्रवान प्रवान रूप में, संसै में संसैसा । धरै चपलता चपल कहावै, लै विधान में लैसा ॥१॥ उद्यम करत उद्यमी कहिये, उदय सरूप उदैसा । व्यवहारी व्यवहार करम में, निहचै में निहचैसा ॥२॥ पूरण दशा धरे सम्पूरण, नय विचार में तैसा । दरवित सदा अखै सुखसागर, भावित उतपति खैसा ॥३॥ नाहीं कहत होई नाहीं सा, हैं कहिये तो है सा । एक अनेक रूप है वरता, कहौ कहां लौं कैसा ॥४॥ वह अपार ज्यौं रतन अमोलिक बुद्धि विवेक ज्यों ऐसा । कल्पित वचन विलास 'बनारसि' वह जैसे का तैसा ॥५॥