ऐसो नरभव पाय गंवायो धन को पाय दान नहीं दीनों, चारित्र चित्त नहीं लायो श्री जिनदेव की सेव न कीनी, मानुष जनम लजायो ॥टेक॥विषय-कषाय बढ्यो प्रतिदिन-दिन, आत्म बल सु-घटायो ।तज सतसंगत भयो दुख संगी, मोक्ष का पाट लगायो ॥ऐसो...१॥रजतश्वान सम फिरत निरंकुश मानस नाहीं मनायो ।कंद मूल मद्य मास भखन को, नितप्रति चित्त लगायो ॥ऐसो...२॥त्रिभुवन पति भयो मैं भिखारी ये अचरज मोहे आयो ।श्री जिन वचन सुधा सम तजके 'नैनानन्द' पछतायो ॥ऐसो...३॥