जड़ता बिन आप लखें, नाहि मिटे मोरी ॥टेक॥लखों जब निज हिये नैन, भयो मोहे अतुल चैन ।सम्यक् के अभाव मैंने, कीनी अब फेरी ॥१॥अतुल सुख अतुल ज्ञान, अतुल वीर्य को निधान ।काया में विराजे मान, मुक्ति मेरी चेरी ॥२॥द्रव्यकर्म विनिमुक्त, भावकर्म असंयुक्त ।निश्चयनय लोक मान, परजय वप्रधरी ॥३॥जैसे दधिमांहि छवि तैसे जड़मांहि जीव ।देखी हम अपने 'नैन' आनन्द की देरी ॥४॥