यो तन जावे तो जावो, मेरी उत्तम क्षमा न जाय ॥टेक॥बिना दोष दुर्जन दु:ख देवे, धीरज धार सबही सह लेवे,क्रोध जरा नहीं लाय, मेरी उत्तम क्षमा न जाय ॥१॥क्षमा को धारे जो तन पर, लगे न गोली तोरे बदन पर,दुश्मन ही थक जाय, मेरी उत्तम क्षमा न जाय ॥२॥क्रोध अग्नि संसार जला के, क्षमा नीर से उसे बुझाए,वह नर धन्य कहाय, मेरी उत्तम क्षमा न जाय ॥३॥क्षमा समान और नहीं दूजा, सभी करो मिल इसकी पूजा,'मख्खन' ही सुख पाय, मेरी उत्तम क्षमा न जाय ॥४॥क्षमा करे जग में सुख साता, यही सुरग मोक्ष की दाता,यही शिवराज दिलाय, मेरी उत्तम क्षमा न जाय ॥५॥