चिदानंद भूलि रह्यो सुधि सारी,तू तो करत फिरै म्हारी म्हारी ॥टेक॥मोह उदय तैं सबही तिहारी, जनक मात सुत नारी ।मोह दूरि कर नेत्र उघारो, इन में कोई न तिहारी ॥चिदानंद भूलि रह्यो सुधि सारी, तू तो करत फिरै म्हारी म्हारी ॥१॥झाग समान जीवन जोवन, पर्वत नाला कारी ।धनपति रंक समान सबन को, जात न लागे वारी ॥चिदानंद भूलि रह्यो सुधि सारी, तू तो करत फिरै म्हारी म्हारी ॥२॥जुवा मांस मधु अरु वेश्या, हिंसा चौरी जारी ।सप्त व्यसन में रत्त होय के, निजकुल कीन्हो कारी ॥चिदानंद भूलि रह्यो सुधि सारी, तू तो करत फिरै म्हारी म्हारी ॥३॥पुन्य पाप दोउ लार चलत हैं, यह निश्चय उरधारी ।धर्म द्रव्य तोय स्वर्ग पठावै, पाप-नरक में डारी ॥चिदानंद भूलि रह्यो सुधि सारी, तू तो करत फिरै म्हारी म्हारी ॥४॥आतम रूप निहार भजो जिन, धर्म मुक्ति सुखकारी ।'बुधमहाचंद' जानि यह निश्चय, जिनवर नाम सम्हारी ॥चिदानंद भूलि रह्यो सुधि सारी, तू तो करत फिरै म्हारी म्हारी ॥५॥