जीव तू भ्रमत-भ्रमत भव खोयो,जब चेत गयो तब रोयो ॥टेक ॥सम्यग्दर्शन ज्ञान चरण तप यह धन धूरि विगोयो ।विषय भोग-गत रस को रसियो छिन छिन में अति सोयो ॥जीव तू भ्रमत-भ्रमत भव खोयो ॥१॥क्रोध मान छल लोभ भयो तब इनही में उरझोयो ।मोहराय के किंकर यह सब इनके वसि है लुटोयो ॥जीव तू भ्रमत-भ्रमत भव खोयो ॥२॥मोह निवार संवारसु आयो आतम हित स्वर जोयो ।'बुध महाचन्द्र' चन्द्र सम होकर उज्ज्वल चित रखोयो ॥जीव तू भ्रमत-भ्रमत भव खोयो ॥३॥