जीव निज रस राचन खोयो, यो तो दोष नही करमन को ॥टेक॥पुद्गल भिन्न स्वरूप आपणू, सिद्ध समान न जोयो ॥१॥विषयन के संग रक्त होय के कुमती सेजां सोयो ।मात तात नारी सुत कारण घर घर डोलत रोयो ॥जीव निज रस राचन खोयो ॥२॥रूप रंग नव जोविन परकी नारी देख रमोयो ।पर की निन्दा आप बढ़ाई करता जन्म विगोयो ॥जीव निज रस राचन खोयो ॥३॥धर्म कल्पतरु शिवफलदायक ताको जरनै न टोयो ।तिसकी ठोड महाफल चाखन पाप बबूल ज्यों बोयो ॥जीव निज रस राचन खोयो ॥४॥कुगुरु कुदेव कुधर्म सेयके पाप भार बहु ढोयो ।बुध महाचन्द्र कहे सुन प्रानी अंतर मन नही धोयो ॥जीव निज रस राचन खोयो ॥५॥राचन=लीन; आपणू=अपना; जोयो=देखा; सेजां=बिस्तर,सेज;