निज घर नाय पिछान्या रे,मोह उदय होने तैं मिथ्या भर्म भुलाना रे ॥टेक॥तू तो नित्य अनादि अरूपी सिद्ध समाना रे ।पुद्गल जड़ में राचि भयो तूं मूर्ख प्रधाना रे ॥निज घर नाय पिछान्या रे ॥१॥तन धन जोविन पुत्र वधू आदिक निज मानारे ।यह सब जाय रहन के नाई समझ सियाना रे ॥निज घर नाय पिछान्या रे ॥२॥बाल पके लड़कन संग जोविन त्रिया जवाना रे ।वृद्ध भयो सब सुधिगई अब धर्म भुलाना रे ॥निज घर नाय पिछान्या रे ॥३॥गई गई अब राख रही तू समझ सियाना रे ।'बुध महाचन्द्र' विचार के जिन पद नित्य रमाना रे ॥निज घर नाय पिछान्या रे ॥४॥