चिद्रूप हमारा, इसका ही सहारा ।प्रभुरूप हमारा, इसका ही सहारा ॥परभाव के प्रसंग में, नहीं मेरा गुजारा ।प्रभुरूप हमारा, चिद्रूप हमारा, इसका ही सहारा ॥टेक॥वस्तु स्वरूप ही नहीं, कि पर से कुछ मिले ।खुदगर्ज भी किसको कहें, सब सत्त्व के भले ।स्पष्ट है, क्या कष्ट है, विकल्प ही क्यों चले ।नहीं हम किसी के, कोई नहीं, कुछ भी हमारा ॥प्रभुरूप हमारा, चिद्रूप हमारा, इसका ही सहारा ।परभाव के प्रसंग में, नहीं मेरा गुजारा ॥१॥इक क्षेत्र में अवगाहि होके, तन अमित मिले ।वे भी रहे न साथ जो, इतने घुले मिले ।जड़ वैभवों की बात क्या, ये प्रकट पर डले ।रागादि भी न रह सका बन करके हमारा ॥प्रभुरूप हमारा, चिद्रूप हमारा, इसका ही सहारा ।परभाव के प्रसंग में, नहीं मेरा गुजारा ॥२॥निज सहज-सिद्ध सहज-ज्ञान, सहज दर्शमय ।सहजानन्द स्वरूप, सहज शुद्ध शक्ति मय निज सहज चिद्विलासका जिसमें है सहज लय ।मेरा सहज स्वरूप अमित, गुण का पिटारा ॥प्रभुरूप हमारा, चिद्रूप हमारा, इसका ही सहारा ।परभाव के प्रसंग में, नहीं मेरा गुजारा ॥३॥