भैया मेरे नरभव विषयों में न गंवाना ।भैया मेरे आपनो स्वरूप न भुलाना ।देखो निज दृष्टि निभाना ॥टेक॥ये मन ये विज्ञान निराला, सब गतियों में सबसे आला ।मुक्ति के मंदिर के द्वारों, का यह खोले बंधन ताला ॥अपने में आपही सुहाना-सुहाना ।भैया मेरे नरभव विषयों में न गंवाना ।भैया मेरे अपनो स्वरूप न भुलाना ॥१॥निज परिचय बिन, जग में डोले ।अब स्वरूप रच अघमल धो ले ।सबके ज्ञाता सबसे न्यारे, निज ज्ञायकता में रात हो ले ।जानो ये सारा विराना-विरानाभैया मेरे नरभव विषयों में न गंवाना ।भैया मेरे अपनो स्वरूप न भुलाना ॥२॥जब लग रोग मरण नहीं आए,शांति सुधारस पीता जाए ।सहजानन्द स्वरूप न भूलो,सारा अवसर बीता जाए शिवपथ में कदम बढ़ाना-बढ़ानाभैया मेरे नरभव विषयों में न गंवाना ।भैया मेरे अपनो स्वरूप न भुलाना देखो निज दृष्टि निभाना ॥३॥