दस लक्षणों को ध्याके शुभ भावना बनाएँ,करें माफ माँगे माफी, यूँ ही पर्व हम मनाएँ ॥रचते हैं हम जो पूजन सोलह ही कारणों की,जीवन में जो उतारे सम्यक् को ही जगाएँ ॥दस लक्षणों को ध्याके शुभ भावना बनाएँ ॥१॥करे नाश क्रोध माना, तजे छल, ना लोभ राखे,नार सच बोले, पाले संयम, तप त्याग भाव लाएँ ॥दस लक्षणों को ध्याके शुभ भावना बनाएँ ॥२॥जग में ना कुछ भी मेरा, इस भेद को ही जानें,व्रत शील धार करके, सही लाभ ही उठाएँ ॥दस लक्षणों को ध्याके शुभ भावना बनाएँ ॥३॥रत्नत्रयों को घर के, चारित्र की नाव चढ़कर,आठों करम खपाके, 'प्रभु' भव के पार जाएँ ॥दस लक्षणों को ध्याके शुभ भावना बनाएँ ॥४॥