मंगल गाओ, खुशी मनाओ, पार्श्वनाथ निर्वाण गये, आतम से परमातम बनने का पथ कर निर्माण गये ।काशी देश बनारस नगरी, अश्वसेन भूपति के लाल, माँ वामा के नन्द दुलारे, क्षत्री कुल गौरव मणि भाल, जीवन में जीवन भर बढ़ते, अपने पद परमाण गये ॥मंगल...१॥वन क्रीड़ा को जाते मग में, मूढ़ तपसी ईंधन में, नाग नागिनी जलते उबारे, महामंत्र देकर क्षण में, वस्तु स्वरूप समझ बन योगी, करने निज कल्याण गये ॥मंगल...२॥काज परिजन समाज सब, पोट परिग्रह की त्यागी, वीतराग निर्ग्रन्थ दिगम्बर, महाव्रती वे बड़ भागी, उपसर्गों से हुये न विचलित, सुर नर भी पहचान गये ॥मंगल...३॥दुर्द्धर पर कैवल्य ज्योतिवर, निस्पृह हो उपदेश दिया, सित सावण सम्मेदाचल से, महा सिद्ध पद प्राप्त किया, वही आज है मोक्ष सप्तमी, गुरुजन यही बखान गये ॥मंगल...४॥