वीर की वाणी
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वीर की वाणी सुनलो जी, वीर की वाणी सुनलो जी
विपुलाचल पर्वत पर आ, जिनवाणी सुनलो जी ॥टेक॥
शुक्ल दशम वैशाख वीर को, केवल ज्ञान हुआ,
किन्तु दिव्य-ध्वनि खिरी नहीं, ऐसा व्यवधान हुआ ।
वीर की वाणी सुनलो जी - 2 ॥१॥
छ्यासठ दिन हो गये, इन्द्र ने अवधिज्ञान जोड़ा,
गणधर की है कमी, शीघ्र गणधर लाने दौड़ा ।
वीर की वाणी सुनलो जी, वाणी सुनलो जी ॥२॥
बड़ी युक्ति से गौतम ब्राह्मण, को लेकर आया,
मान स्तम्भ देख गौतम का, मद सब विनशाया ।
वीर की वाणी सुनलो जी - 2 ॥३॥
गौतम ने समकित उपजा मुनि-व्रत स्वीकार किया,
ज्ञान मन:पर्यय पाया गणधर पद धार लिया ।
वीर की वाणी सुनलो जी - 2 ॥४॥
तत्क्षण खिरी दिव्य ध्वनि प्रभु की, गणधर ने झेली,
जिनवाणी कल्याणी ने माँ की उपमा ले ली ।
वीर की वाणी सुनलो जी - 2 ॥५॥
प्रथम देशना वीर प्रभु की, सुन जग हर्षाया,
देव, सुरेन्द्र, नरेन्द्र, खगेन्द्रों, ने मंगल गाया ।
वीर की वाणी सुनलो जी - 2 ॥६॥
द्वादशांग वाणी रचकर, गौतम धन्य हुये,
श्रावण कृष्णा एकम के दिन, भाग्य प्रसन्न हुये ।
वीर की वाणी सुनलो जी - 2 ॥७॥
हम भी प्रभु की वाणी सुनकर, समकित उपजायें,
शासन वीर जयंति पर प्रभु, के ही गुण गायें ।
वीर की वाणी सुनलो जी - 2 ॥८॥