होरी खेलूंगी घर आए चिदानंद कन्त ।शिशर मिथ्यात गई अब, आइ काल की लब्धि वसंत ॥टेक॥पीय संग खेलनि कौं, हम सइये तरसी काल अनंत ।भाग जग्यो अब फाग रचानौ, आयौ विरह को अंत ॥१॥सरधा गागरि में रूचि रुपी, केसर घोरि तुरन्त ।आनन्द नीर उमंग पिचकारी, छोडूंगी नीकी भंत ॥२॥आज वियोग कुमति सौतनि कौ, मेरे हरष अनंत ।'भूधर' धनि एही दिन दुर्लभ, सुमति राखी विहसंत ॥३॥