आयो सहज बसन्त खेलैं सब होरी होरा ॥टेक॥उत बुधि दया छिमा बहु ठाढ़ीं, इत जिय रतन सजै गुन जोरा ।ज्ञान ध्यान डफ ताल बजत हैं, अनहद शब्द होत घनघोरा ।धरम सुराग गुलाल उड़त है, समता रंग दुहूंने घोरा ॥आयो सहज बसन्त खेलैं सब होरी होरा ॥१॥परसन उत्तर भरि पिचकारी, छोरत दोनों करि करि जोरा ।इतः कहैं नारि तुम काकी, उत कहैं कौन को छोरा ॥आयो सहज बसन्त खेलैं सब होरी होरा ॥२॥आठ काठ अनुभव पावक में, जल बुझ शांत भई सब ओरा ।'द्यानत' शिव आनन्दचन्द छबि, देखें सज्जन नैन चकोरा ॥आयो सहज बसन्त खेलैं सब होरी होरा ॥३॥