पर्व पर्युषण आया आनंद
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पर्व पर्युषण आया आनंद स्वरूपी जान ॥टेक॥
पर्व कहें सब उत्तम दिन को, उत्तम वह जिनसे निजहित हो ।
यह संदेश सुनाया श्री वीतराग भगवान ॥
पर्व पर्युषण आया आनंद स्वरूपी जान ॥१॥
सबकी परिणति न्यारी-न्यारी, आप रहें ज्ञायक अविकारी ।
शत्रु मित्र समझाया, यह धर्म क्षमा गुणखान ॥
पर्व पर्युषण आया आनंद स्वरूपी जान ॥२॥
बड़ापना जो पर से माने, अपनी निधि को न पहचाने ।
मानकषाय हटाया, यह धर्म मार्दव जान ॥
पर्व पर्युषण आया आनंद स्वरूपी जान ॥३॥
जाने भले ही न अज्ञानी, किन्तु जानते केवलज्ञानी ।
इस भाँति समझ में आया, अब तजहुँ कपट कृपान ॥
पर्व पर्युषण आया आनंद स्वरूपी जान ॥४॥
मैं पवित्र चैतन्यस्वरूपी, भाव आस्रव अशुचि विरूपी ।
चाहदाह विनसाया, धारूँ संतोष महान ॥
पर्व पर्युषण आया आनंद स्वरूपी जान ॥५॥
वस्तु-स्वरूप धरै जो जैसो, सम्यक ज्ञानी जाने तैसो ।
राग-द्वेष मिटाया, बोले हित-मित-प्रिय बान ॥
पर्व पर्युषण आया आनंद स्वरूपी जान ॥६॥
पंचेन्द्रिय मन भोग तजे जा, निज में निज उपयोग सजै
षट्काय न जीव नशाया, यह संयम धर्म प्रधान ॥
पर्व पर्युषण आया आनंद स्वरूपी जान ॥७॥
निस्तरंग निजरूप रमे जो, सकल विभाव समूह वमे जो ।
द्वादश विधि बतलाया, यह तप दाता निर्वाण ॥
पर्व पर्युषण आया आनंद स्वरूपी जान ॥८॥
राग-द्वेष की परिणति छीजे, चारों दान विधि से दीजे ।
उत्तम त्याग बताया, हितकारी स्व पर सुजान ॥
पर्व पर्युषण आया आनंद स्वरूपी जान ॥९॥
त्याग करे जो पर की ममता, अपने उर में धारे समता ।
आकिंचन धर्म सुहाया सब संग तजो दुख खान ॥
पर्व पर्युषण आया आनंद स्वरूपी जान ॥१०॥
विषय बेल विष नारी तजकर, पुद्गलरूप लखो नारी नर ।
ब्रह्मचर्य मन भाया, आनंद दायिकी जान ॥
पर्व पर्युषण आया आनंद स्वरूपी जान ॥११॥
दशलक्षण अरु सोलह कारण, रत्नत्रय हिंसा निरवारन ।
वस्तु स्वभाव बताया 'निर्मल' आतम पहचान ॥
पर्व पर्युषण आया आनंद स्वरूपी जान ॥१२॥