जय-जय मुनिवर विष्णुकुमार, गुरुवर धर्म के रक्षणहार ॥टेक॥दुष्ट बली जब कुमति उपाई, संघ घेर नरमेघ रचाई ।मच गया गजपुर हाहाकार ॥जय-जय मुनिवर विष्णुकुमार, गुरुवर धर्म के रक्षणहार ॥1॥संघ उपसर्ग की खबर सु-पाकर, पुष्पदंत मुनि अति घबराकर ।आकर तुमसे करी पुकार ॥जय-जय मुनिवर विष्णुकुमार, गुरुवर धर्म के रक्षणहार ॥2॥गुरु तुम वीतरागता धारी, विक्रिया ऋद्धि प्रकट भई भारी ।उमड़ा वात्सल्य सुखकार ॥जय-जय मुनिवर विष्णुकुमार, गुरुवर धर्म के रक्षणहार ॥3॥बौने द्विज का वेष बनाया, चमत्कार तप का दिखलाया ।पड़ गया बलि नृप चरण मँझार ॥जय-जय मुनिवर विष्णुकुमार, गुरुवर धर्म के रक्षणहार ॥4॥मुनियों का उपसर्ग मिटाया, सबको दया धर्म सिखलाया ।हुआ जिनधर्म का जय जयकार ॥जय-जय मुनिवर विष्णुकुमार, गुरुवर धर्म के रक्षणहार ॥5॥क्षमा भाव धरि बलि को छोड़ा, उसने हिंसा से मुख मोड़ा ।धारा जैनधर्म सुखकार ॥जय-जय मुनिवर विष्णुकुमार, गुरुवर धर्म के रक्षणहार ॥6॥सर्वजनों में आनन्द छाया, रक्षाबन्धन पर्व मनाया ।हर्षित होय दिया आहार ॥जय-जय मुनिवर विष्णुकुमार, गुरुवर धर्म के रक्षणहार ॥7॥