जय मुनिवर विष्णुकुमार
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ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्'
जय-जय मुनिवर विष्णुकुमार, गुरुवर धर्म के रक्षणहार ॥टेक॥
दुष्ट बली जब कुमति उपाई, संघ घेर नरमेघ रचाई ।
मच गया गजपुर हाहाकार ॥
जय-जय मुनिवर विष्णुकुमार, गुरुवर धर्म के रक्षणहार ॥1॥
संघ उपसर्ग की खबर सु-पाकर, पुष्पदंत मुनि अति घबराकर ।
आकर तुमसे करी पुकार ॥
जय-जय मुनिवर विष्णुकुमार, गुरुवर धर्म के रक्षणहार ॥2॥
गुरु तुम वीतरागता धारी, विक्रिया ऋद्धि प्रकट भई भारी ।
उमड़ा वात्सल्य सुखकार ॥
जय-जय मुनिवर विष्णुकुमार, गुरुवर धर्म के रक्षणहार ॥3॥
बौने द्विज का वेष बनाया, चमत्कार तप का दिखलाया ।
पड़ गया बलि नृप चरण मँझार ॥
जय-जय मुनिवर विष्णुकुमार, गुरुवर धर्म के रक्षणहार ॥4॥
मुनियों का उपसर्ग मिटाया, सबको दया धर्म सिखलाया ।
हुआ जिनधर्म का जय जयकार ॥
जय-जय मुनिवर विष्णुकुमार, गुरुवर धर्म के रक्षणहार ॥5॥
क्षमा भाव धरि बलि को छोड़ा, उसने हिंसा से मुख मोड़ा ।
धारा जैनधर्म सुखकार ॥
जय-जय मुनिवर विष्णुकुमार, गुरुवर धर्म के रक्षणहार ॥6॥
सर्वजनों में आनन्द छाया, रक्षाबन्धन पर्व मनाया ।
हर्षित होय दिया आहार ॥
जय-जय मुनिवर विष्णुकुमार, गुरुवर धर्म के रक्षणहार ॥7॥