श्री सिद्धचक्र का पाठ, करो दिन आठ ।ठाठ से प्राणी, फल पायो आतम ध्यानी । जिसने सिद्धों का ध्यान किया, उसने अपना कल्याण किया।समकित पाकर हो जाता, सम्यक ज्ञानी॥१॥ पापों का क्षय हो जाता है, पर से ममत्व हट जाता है। भव भावो में वैराग्य होय सुखदानी ॥२॥ पुण्यों की धारा बहती है, माता जिनवाणी कहती है। धर पंच महाव्रत हो जाता मुनि ज्ञानी ॥३॥ फिर तेरह विधि चारित्रधार, निज रूप निरखता बार बार। श्रेणी चढकर हो जाता केवल ज्ञानी ॥४॥ निज के स्वरूप की मस्ती में, रहता स्वभाव की बस्ती में.निश्चित पाता है, सिद्धों की राजधानी ॥५॥ जिसने भी मन से पाठ किया, उसने ही मंगल ठाठ किया। क्रम क्रम से पाता मोक्ष लक्ष्मी रानी ॥६॥