तेरैं मोह नहीं ।चक्री पूत सुगुनघर बेटो, कामदेव सुत ही ॥टेक॥नव भव नेह जानकै कीनौ, दानी श्रेयाँस ही ।मात तात निहाचै शिवगामी, पहले सुत सब ही ॥१॥विद्याधरके नृप कर कीनौं, साले गनधर ही ।बेटीको गननी पद दीनों, आरजिका सब ही ॥2॥पोता आप बराबर कीनों, महावीर तुम ही ।'द्यानत' आपन जान करत हो, हम हूँ सेवक ही ॥3॥