भज श्रीआदिचरन मन मेरे, दूर होंय भव भव दुख तेरे ।भगति बिना सुख रंच न होई, जो ढूंढै तिहुँ जग में कोई ॥टेक॥प्रान-पयान-समय दुख भारी, कंठ विषैं कफकी अधिकारी ।तात मात सुत लोग घनेरा, ता दिन कौन सहाई तेरा ॥भज श्रीआदिचरन मन मेरे, दूर होंय भव भव दुख तेरे ॥1॥तू बसि चरण चरण तुझमाहीं, एकमेक ह्वै दुविधा नाहीं ।तातैं जीवन सफल कहावै, जनम जरामृत पास न आवै ॥भज श्रीआदिचरन मन मेरे, दूर होंय भव भव दुख तेरे ॥२॥अब ही अवसर फिर जम घेरैं, छोड़ि लरक-बुध सद्गुरु टेरैं ।'द्यानत' और जतन कोउ नाही, निरभय होय तिहूँ जगमाहीं ॥भज श्रीआदिचरन मन मेरे, दूर होंय भव भव दुख तेरे ॥3॥