अब हम नेमिजी की शरन ।और ठौर न मन लागत है, छांडि प्रभु के संग ॥टेक॥सकल भवि-अघ-दहन वारिद, विरद तारन तरन ।इन्द्र चन्द फनिन्द ध्वावै, पाय सुख दुख हरन ॥अब हम नेमिजी की शरन ॥1॥भरम-तम-हर-तरनि, दीपति, करम गन खय करन ।गनधरादि सुरादि जाके, गुन सकत नहि वरन ॥अब हम नेमिजी की शरन ॥2॥जा समान त्रिलोक में हम, सुन्यौं और न करन ।दास द्यानत दयानिधि प्रभु, क्यों तजैंगे परन ॥अब हम नेमिजी की शरन ॥3॥