महावीर महावीर जीवाजीव छीर-नीर,पाप ताप-नीर-तीर धरम की धर है ।आस्रव स्रवत नाँहि बँधत न बन्ध माँहि,निज्र्जरा निर्जरत संवर के घर है ॥तेरमो है गुनथान सोहत सुकल ध्यान,प्रगटो अनन्त ज्ञान मुकत के वर है ।सूरज तपत करै जड़ता कूँ चन्द धरै,'द्यानत' भजो जिनेश कोऊ दोष न रहै॥