आदिपुरुष मेरी आस भरो जी,अवगुन मेरे माफ करो जी ।दीनदयाल विरद विसरो जी, कै बिनती गोरी श्रवण धरों जी ॥टेक॥काल अनादि वस्यो जगमाँही, तुमसे जगपति जाने नाही ।पाय न पूजे अंतरजामी, यह अपराध क्षमाकर स्वामी ॥आदि.१॥भक्तिप्रसाद परम पद है है, बंधी बंधदशा मिटि जैहै ।तब न करो तेरी फिर पूजा, यह अपराध छमा प्रभु दूजा ॥आदि.२॥'भूधर' दोष किया बखावै, अरु आगैको लारें लावे ।देखो सेवक की ढिठवाई, गरुवे साहिबसौं बनियाई ॥आदि.३॥