देखो नाभिनंदन
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देखो नाभिनंदन जगवंदन मदन भंजन गुन निरंजन,
राजको समाज साज, वन विचरत ॥टेक॥
इन्द्रिनिसौ नेह तोरि, सकल कषाय छोरि,
आतमसौ प्रीत जोरि, धीरज धरत ॥१॥
राग दोष मोषकर, मोष भाव पोषकर,
पोष विषैं सोष करि, करम हरत ॥२॥
'द्यानत' मेरू समान, थिर तन मन ध्यान,
इन्द्र धरनिंद्र आनि, पाँइन परत ॥3॥