मेरी जीभ आठौं जाम, जपि-जपि ऋषभजिनिंदजी का नाम ॥टेक॥नगर अजुध्या उत्तम ठाम, जनमैं नाभि नृपति के धाम ॥१॥ सहस अठोत्तर अति अभिराम, लसत सुलच्छन लाजत काम ॥२॥करि थुति गान थके हरि राम, गनि न सके गणधर गुन ग्राम ॥३॥'भूधर' सार भजन परिनाम, अर सब खेल खेल के खांम ॥४॥