लाल कैसे जावोगे
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तर्ज : जिनमंदिर में आके हम
लाल कैसे जावोगे, असरनसरन कृपाल ॥टेक॥
इक दिन सरस वसंतसमय में, केशव की सब नारी ।
प्रभुप्रदच्छनारूप खड़ी ह्वै, कहत नेमिपर वारी ॥
लाल कैसे जावोगे, असरनसरन कृपाल ॥१॥
कुंकुम लै मुख मलत रुकमनी, रंग छिरकत गांधारी ।
सतभामा प्रभुओर जोर कर, छोरत है पिचकारी ॥
लाल कैसे जावोगे, असरनसरन कृपाल ॥२॥
व्याह कबूल करो तौ छूटौ, इतनी अरज हमारी ।
ओंकार कहकर प्रभु मुलके, छांड दिये जगतारी ॥
लाल कैसे जावोगे, असरनसरन कृपाल ॥३॥
पुलकितवदन मदनपित-भामिनि, निज निज मदन सिधारी ।
'दौलत' जादववंशव्योम शशि, जयौ जगत हितकारी ॥
लाल कैसे जावोगे, असरनसरन कृपाल ॥४॥