आनंद अंतर मा आज न समाय,जनमे पारसकुमार खुला मुक्ति का द्वार।तिहुँ लोक में आनंद छाया.स्वर्ग पुरी से देवगति तज प्रभु ने नर-तन पायो ।धन्य वामादेवी माता तीर्थङ्कर सुत जायो ।इन्द्र नगरी माँ आये, मंगल उत्सव रचाये…सारी धरती दुल्हन सी सजी जाये ॥आनंद...१॥सोलह सपने मां ने देखे, मन में अचरज भारी ।अश्वसेन से फल जब पूछा, उपजा आनंद भारी ।तीनों लोकों का नाथ, तेरे गर्भ में मातअनुभूति में दर्शन पाय ॥आनंद...२॥अंतिम जन्म लिया प्रभु तुमने सुरपति द्वारे आये ।नेत्र हजार निहारे प्रतिक्षण तृप्त नहीं हो पाये ।गीत सुर बाला गायें, शची चौक पुराय नरकों में भी शान्ति छाय ॥आनंद...३॥भव्य जनों के इष्ट जिनेश्वर, अंतिम भव को धारे ।स्वयं तिरे भवसागर से और हमको पार उतारे ॥सब मिलकर के आये प्रभु दर्शन को पायप्रभुता निज की पा जाय ॥आनंद...४॥